रविवार, 23 दिसंबर 2012

नव वर्ष जब आएगा तब आएगा
आओ पहले इस वर्ष से बच जाएं
घोर पाप और अनीति के युग में
सोचे कैसे अपने आप ही बच पाए ?
==========आशावादी   
देश के नाम :
देश का युवा अब जाग गया है उसने ली अंगड़ाई 
दरिन्दों अब दरिंदगी छोड़ो तुम्हारी शामत आई 
जो कदम बढ़े अब नहीं रुकेंगे चाहे कुछ हो जाए 
चाहे जितना पानी बरसे चाहे जितनी लाठी खाएं ।
नहीं सहेंगे सियासत कोई आज किसी गददार की 
जय बोलो हिंदुस्तान की जय बोलो हिंदुस्तान की ।।
- डॉ.सुधाकर आशावादी 
शास्त्री भवन,ब्रहमपुरी,मेरठ 

बुधवार, 21 नवंबर 2012

======मुक्तक=========
आदमी है आदमी सी बात कर
न कभी तू किसी से घात कर
आचरण तेरा अनूठा हो सदा
नफरतों की न कभी बरसात कर ।।
=============आशावादी 
=====मुक्तक ================
ह्रदय की गहराई से मैंने तुमको चाहा है
पर तुमने कब मुझको मेरे जैसा चाहा है
एक कसक है अपनाने की मेरे मन में
पर तूने ऐसा कब अपने मन से चाहा है ?
=====================आशावादी  

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

साँप की बेचैनी इस हद तक है
उसकी अपनी हद ही हद तक है
कैसे डसे कैसे फुंफकार मारे
कोई डरता नही अब
उसके जहर की हद से ।
=========== आशावादी 

सोमवार, 12 नवंबर 2012

शिक्षकों [जीवन-दीपों] के नाम :
प्रकाश के स्तम्भ हो तुम देश की पहिचान हो 
तुम धरा उज्जवल बनाते और देते ज्ञान हो 
आज तुमसे ही धरा यह प्रकाश पाती 
और तुम ही देश की अनुपम हो थाती ।।
-------------डॉ.सुधाकर शर्मा "आशावादी "
वरिष्ठ प्रवक्ता:शिक्षा संकाय [बी.एड.]
ने.में.शि.न,दास महाविद्यालय,बदायूँ 
सम्बद्ध:एम-जे-पी-रूहेलखंड वि.वि.,बरेली 

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

फिर पढेंगे प्रीत की पुस्तक
प्रीत की या रीत की पुस्तक
नफरतें मिट जाएं मन से
सच में ऐसी गीत की पुस्तक ।
============आशावादी 
कृत्रिमता से दूर एक नन्हा सा दिया
सोचता है क्या भला कर पाऊंगा मैं
क्या धरा का तम हरूँगा
या स्वयं ही मैं मिटूंगा ?
संग लेकर तेल बाती चल पड़ा
हौंसला लेकर बड़ा वह चल पड़ा
तम हरा उसने अँधेरी कोठरी का
और दिखलाया असर अपने करम का
जिसने बितराया उसे ऊंची हवेली में
वो भी टिक पाया नहीं कुछ देर तक भी
वह दिया था जिसने सीखा था स्वयं ही
दहना दह कर और के हित सुख संजोना
दूसरो के सुख में स्व अस्तित्व खोना ।।
---------------सुधाकर आशावादी 

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

यह जीवन कितना पावन है
संबंधों का वृन्दावन है ।
======आशावादी 
श्वांसों की धड़कन है जीवन संगीत
उभर रहे झरनों संग प्रीत भरे गीत
झर-झर झरती सी सतरंगी धार
आओ चलो बुने यही झरनों के गीत ।।
========आशावादी ========

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

नफरतों का दौर बढ़ता जा रहा है
आदमी विश्वास छलता जा रहा है
आग की भट्टी का कैसे दोष मानें
खोट सोने संग पिघलता जा रहा है ।।
जिंदगी में दुःख समस्या है
और सुख केवल समस्यापूर्ति ।

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

न जाने कितने हिसाब हैं जिंदगी की किताब में
न जाने कितने सवाल हैं जिंदगी की किताब में
लड़ते हैं रोज़ जंग हम अपनी जिंदगी से ही
लिखते  नए अध्याय जिंदगी की किताब में ।। 

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

हम करें आचरण शुद्धता का यहाँ 
न करें आचरण क्रूरता का यहाँ 
हम विचारें कि कैसे देश का उत्थान हो 
देश अपने कर्म से विश्व में महान हो ।।
                          - डॉ, सुधाकर आशावादी 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

कैसे कैसे रिश्ते, जिनमे बौनापन है
खून के रिश्तों से खोया अपनापन है
किसको मानें अपना किसको गैर कहें
साथ निभाएगा सिर्फ जो अपना तन है ।।
फिर अंधेरों की सियासत है
उनकी अपनी ही रियासत है
कैसे बोलें कैसे चुप रहें
आज कैसी ये रिवायत है ?

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

     " हिन्दी दिवस पर विशेष "
सूर तुलसी ने सींचा जिसे प्यार से 
और कबीरा ने बाँचा था तकरार से 
मीरा के कंठ को शब्द जिसने दिए 
हिन्दी तुझको नमन आज सत्कार से ।।

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

            मुक्तक
हम सियासत के खिलौने हैं
संकीर्ण चिंतन के बिछौने हैं
हम सियासत के बने हैं दाँव
सत्ता सम्मुख आज बौने हैं ।।
                   मुक्तक
संकीर्णता के दायरे से बाहर आओ
विकलांगता के दायरे में मत समाओ
है भरोसा बाजुओं की शक्ति पर यदि
स्वाभिमानी बन स्वयं को आजमाओ ।।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

हादसों के शहर में रोज होते हादसे
बढ़ रही हैं दूरियां बढ़ रहे हैं फांसले
आज किसको  कैसे कहें अपना यारों
बढ़ गए हैं आज देखो नफरतों के हौंसले 

रविवार, 26 अगस्त 2012

             ग़ज़ल
भूख लिख प्यास लिख
बेदम की आवाज़ लिख
भूखे को रोटी मिल जाए
ऐसा कुछ आगाज़ लिख
भूख गरीबी बेकारी में
जीने का अंदाज़ लिख
जितना चाहे उतना लिख ले
पर रोटी का ग्रास लिख ।।

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

                     मुक्तक
घर की बैठक में पापा का रौब ज़माना
और चौके में मम्मी का ही आना जाना
बहुत दिनों के बाद याद उनकी आई है
कैसे सीखें अपनेपन की प्रीत निभाना ।।
          गीतांश
प्रीत पगी है घर की पायल
पर दुनियां पैसे की कायल
बीच बजारिया पायल सजती
कोठे पर भी पायल बजती
कहने को पायल बंधन है
पायल पायल में अंतर है ।

बुधवार, 25 जुलाई 2012



                         गीतांश
जिन्दगी है एक विकट उपहास
और हम हैं महज़ कालीदास ।

अपनी जड़ को खोदते हैं वृक्ष
स्वार्थ पूरित मंत्रणा मय कक्ष
विद्वता को मिल गया बनवास
और हम हैं महज़ कालीदास ।।
           ::एक मुक्तक ::
जानता था बात मेरी मान लोगे
जब कथानक का तनिक भी भान लोगे
फिर करोगे तुम समीक्षा अपनेपन की
तब हकीकत तुम भी मेरी जान लोगे ।

saawan


जाने किस को किसकी याद आई कि चली पुरवाई 
जाने किस विरहन का दिल तरसा कि पानी बरसा 
झूम के लो आया सावन झूम के ....
आओ सावन में बारिस का स्वागत करें ... 

रविवार, 1 अप्रैल 2012

कौन है बागी कौन है दागी समझ में कुछ न आये
जो चम्बल में घूम रहे हैं डाकू वो कहलायें
जनता के मारे जो चाबुक खाल नोंच ले सारी
लोकतंत्र में ऐसे राजा बनें हैं अत्याचारी
कहे'सुधाकर' जनता पर कुछ रहम तो खाओ
अपना घर भरने को उस पर जुल्म न ढाओ ।।
                              - डॉ. सुधाकर आशावादी 

बुधवार, 21 मार्च 2012

muktak

                   मुक्तक
नफरतें बोता रहा जो उम्र भर
नफरतों में उम्र भर जलता रहा
पर न घबराई सृजन की सोच भी
वो अकेला उम्र भर गलता रहा ।।
                   मुक्तक
भोर हुई तो टूटा आँखों का सपना
मीठी नींदों में कोई तो है अपना
आँख खुली तो अपनी अलग व्यथाएं हैं
पीड़ा में अब तो जीवन भर है खपना ।।
           =====  आशावादी 

muktak

                मुक्तक
भरी भीड़ में जो जी के जंजाल बने हैं
लोकतंत्र के लिए जो बड़े सवाल बने हैं
ऐसे खल नायक पर कैसे पार बसायें
राज काज में जो मन से कंगाल बने हैं ।
                  .................आशावादी 

शनिवार, 3 मार्च 2012

man ki baat

             मन की बात

                              - डॉ. सुधाकर आशावादी
मैंने सोचा अपने मन की बात कहूँ
पर किससे मैं अपनेपन की बात कहूँ ?

जिसको समझा मैंने अपना मित्र यहाँ
वो बेगाना कैसे उस से  ज़ज्बात कहूँ ?

दर्द सुना जिसने मेरा अपना बन कर
बिसराया उसने मैं कैसी घात कहूँ ?

जिससे मुझको कोई भी उम्मीद न थी
उसने साथ निभाया ये सौगात कहूँ ।

रक्त के रिश्तों से बढ़कर है प्रीत यहाँ
'सुधाकर'कैसे मन की सच्ची बात कहूँ ?

                  

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

muktak

                         मुक्तक
तुम्हारा बोलना है क्या हमें कोयल बताती है
तुम्हारे रूप की निखरन नई कोंपल जताती है
तुम्हारी कल्पनाओं में बुने हैं नयन ने सपने
हवा के मंद झोंकों से तुम्हारी  गंध आती है ।
                                         - आशावादी

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

muktak

परिंदे हैं तो ऊँची उड़ान है
उनका मुकम्मल जहान है
उड़ने दें  बेख़ौफ़ नभ में
उनका ही ये आसमान है ।
              - आशावादी 

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

                   मुक्तक
सूर्य के आगमन से तम को छँटना  है
भोर के नवजागरण  से पुष्प खिलना है
चिरनिद्रा में आदमी को सना है एक बार
नित्य सोकर के उसे अभ्यास करना है ।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

haiku

      हाइकु

हाथ में छाले
लिए कुदाले,पर
दूर निवाले ।
     [२]
ताजमहल
मरण के बाद
प्रेम निशानी ।
     [३]
बंज़र कोख
मगर उर उगी
प्रेम फसल ।
  - आशावादी 
























मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

                    मुक्तक
फिर अभावों में कोई भूखा मरा है
संवेदनाओं का यहाँ सूखा पड़ा   है
है नहीं चर्चा किसी ऊँची हवेली में
रुख सियासत का कहीं रूखा हुआ है ।
                        - आशावादी

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

                           ग़ज़ल   
जँगलों में बस्तियों  में आग आग तूफ़ान है 
आजकल अपने ही घर में आदमी मेहमान है ।
हमसफ़र वो क्या बनेगा,ज़िक्र उसका क्या करें
इल्म है दुनियां का  जिसको दर्द से अनजान है 
जिंदगी मजदूर  की अब चीखती फुटपाथ  पर  
लाश ढोती भीड़  में क्या एक भी इंसान   है ?
बादलों में छिप न पायेगा 'सुधाकर' का वजूद 
चाँदनी जी भर लुटाने में ही जिसकी शान है ।।
                  - सुधाकर आशावादी  

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

muktak

                       मुक्तक    
तुम्हारा बोलना है क्या हमें कोयल बताती है 
तुम्हारे रूप की निखरन नई कोंपल जताती है 
तुम्हारी कल्पनाओं में बुने हैं नयन ने सपने 
हवा के मंद झोंकों से तुम्हारी गंध आती है ।।
                        - डॉ. सुधाकर आशावादी 

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

muktak

                      muktak    
ध्वंस की   ये धरा न   गगन  चाहिए
ज्ञान   में  हो मगन  वो नमन चाहिए   
गोला बारूद के अब खिलौने न  हों
हो सुगन्धित धरा    वो चमन चाहिए . .
                   [2]
डर के रहता  है जो  वो नहीं वीर है
हर कदम पर लिए डर की जो पीर  है
मृत्यु  है, पाप है, नर्क  है, भय यहाँ
इसको काटेगीजो वो ही शमशीर   है
                   - सुधाकर आशावादी 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

muktak

आँधियाँ भंवर भंवर में नाव है
जिंदगी  नदी लहर तनाव है ।।
                पंडित आशुतोष 

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

घर के बासन भी अब खनखनाने लगे
दर  ये   अलगाव के खटखटाने लगे
प्यार  घटने लगा है यहाँ इस कदर
लोग मिलने में भी नकनकाने लगे।

पीड़ा में दर्द की सी चुभन ही नहीं
आग में आग की सी अगन ही नहीं
जिंदा लाशें बने लोग फिरते यहाँ
खून में खून की सी तपन ही नहीं ।।
                         - डॉ. सुधाकर आशावादी

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

                         मुक्तक
मत हवाओं से डरो तुम जगमगाओ
पीर  उर में लाख हो पर  मुस्कराओ
अब अँधेरा काल बन डसने न पाए
भोर होगी तुम नया सूरज उगाओ   ।। 
                      [२]
सच कड़वा है फिर भी इससे प्रीत करो
झूठ मिटे जग से कुछ ऐसी रीति करो
भौतिकता है भरम नहीं है अपनापन
हारे न तन-मन कुछ ऐसी जीत लिखो ।।
                             - डॉ. सुधाकर आशावादी

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012


                     मुक्तक
आँख के अंधे नाम नैनसुख बात पुरानी है
आँख खुली पर अंधे दिखना नई कहानी है 
संबंधों की बात करें तो खोया अपनापन
रक्तिम आभा छोड़ बुढ़ापा चुने जवानी है।|
                     [२]
नफरतों का दौर बढ़ता जा रहा है 
आदमी विश्वास छलता जा रहा है 
आग की भट्टी का कैसे दोष माने 
खोट सोने संग पिघलता जा रहा है ।। 
                        -डॉ. सुधाकर आशावादी

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

muktak

सूरज को दीपक दिखलाना बंद करो
अच्छाई पर मुंह बिचकाना बंद करो
सच्चाई कब लाख छुपाये छुपती है
जो सच है उसको झुठलाना बंद करो

फिर नसों में रक्त का संचार हो
स्वार्थ पूरित न कोई विस्तार हो
राष्ट्र चिंतन से जुड़े हर आचरण
सर्जनाओं से भरा संसार हो ।।
                      -डॉ. सुधाकर आशावादी


शनिवार, 28 जनवरी 2012

chunav charch

जिनके काले वस्त्र थे ,मिले  सभी में दाग 
अफरातफरी में दिखे वे  सब काले नाग  
वे सब काले नाग, कुटिलता   के पर्याय  
सबने मिल कर रचे स्वार्थ भरे अध्याय  
कहे 'सुधाकर' उनको कडवी  दवा पिलाई 
दवा  पिलाने वाले को सुधि देर से आई . 

शनिवार, 14 जनवरी 2012

dohe

                           दोहे
                                  - डॉ. सुधाकर आशावादी
जंगल जंगल शांति बस्ती बस्ती आग
घर घर में अलगाव का वही विघटनी राग |

बस्ती बस्ती में उगा कुछ ऐसा आतंक
संस्कार बौने हुए क्या राजा क्या रंक |

जिस थाली में खा रहे करें उसी में छेद
कलियुग की महिमा यही है सतयुग से भेद |

आसमान छूने लगे महंगाई के बोल
नैतिकता को छोड़कर महंगी है हर तोल |

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

kale dhan ki khoj

चुनाव आयोग की कड़ी निगरानी में चुनावो में होने वाले काले धन के प्रयोग पर अंकुश लगाने का नायाब तरीका निकाला गया है,जिस कड़ी में नित्य ही पुलिस वाहनों की तलाशी ले रही है, जिसका लाभ भी मिल रहा है, भारी संख्या में धन मिल रहा है, किन्तु इस पड़ताल में आम आदमी दुखी है, अपनी गाढ़ी कमाई को किसी खास उद्देश्य से एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने वाले लोग सबूत के अभाव में अपना धन सरकारी कोष में जमा कराने के लिए विवश है, कई जगह इस अधिकार का प्रयोग गलत ढंग से भी हो रहा है.   

बुधवार, 4 जनवरी 2012

muktak

                          मुक्तक
चल रहे हैं दौर विष के  देवता  के आवरण  में
रात की काली लता है भोर के पहले  चरण में
देश का दुर्भाग्य चिंतन क्या भला तुलसी करेगा
साथ देते हैं जटायु  आज   के   सीता हरण में .
                                         - सुधाकर आशावादी 

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

rajneeti me rar

राजनीति में सब कुछ संभव है, जिसको गाली देते हुए राजनीति चमकाई जाती है, एक समय उसी को गले लगाकर पास बिठाने से परहेज़ नहीं किया जाता, उत्तर प्रदेश के चुनावी वातावरण  में ऐसा ही दृष्टिगत हो रहा है,दुसरे डालो से निकले गए गिरगिटो को सम्मान सहित टिकट परोसे जा रहे है, तथा अपने निष्ठावान  कार्यकर्ताओ की अवहेलना की जा रही है, राजनीति का यह रूप निसंदेह शर्मनाक है. 

रविवार, 1 जनवरी 2012

muktak

                                   ग़ज़ल
जंगलों में, बस्तियों में, आग है,   तूफ़ान है
आजकल अपने ही घर में आदमी मेहमान है

हमसफ़र वो क्या बनेगा ज़िक्र उसका क्या करें
इल्म है दुनिया का जिसको दर्द से अनजान है

जिंदगी मजदूर की अब चीखती फुटपाथ पर
लाश ढोती  भीड़ में  क्या एक  भी   इंसान है ?

बादलों में छिप न पायेगा 'सुधाकर'का वजूद
चाँदनी जी भर लुटाने में ही जिसकी शान है |

                          - डॉ. सुधाकर आशावादी 

lokpal ya jokpal

लोकपाल बिल को लेकर काफी उहापोह की स्थिति है, सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं,मगर सत्यता कुछ और नज़र आती है आम आदमी बखूबी समझता है, कि किस प्रकार से उसे मूर्ख बनाने का
प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि आज के दौर में कोई नहीं चाहता कि यह बिल पास हो, चाहे कॉंग्रेस हो अथवा भाजपा ,सपा हो या बसपा,कोई भी दल ऐसा नहीं है जो भ्रष्टाचार की दलदल में न धंसा हुआ हो, ऐसे में सभी एक दूसरे पर दोषारोपण करके बिल को लटकाने का षड्यंत्र रच रहे है, अन्ना भी अपने स्वार्थी सिपहसालारो कि हरकतों के सम्मुख बौने नज़र आ रहे हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता,कि भ्रष्टाचार जनमानस के रक्त में इतना रच बस गया है,कि उसे जड़ से समाप्त कर पाना  इतना आसान नहीं है ,निसंदेह जब तकतक भ्रष्टाचार  के विरूद्ध जनाक्रोश उत्पन्न नहीं होगा तथा नेक नीयत से इसका उपचार नहीं होगा तब तक लोकपाल पर संशय ही बना रहेगा.

                                                                                                - dr. सुधाकर आशावादी