शनिवार, 28 जनवरी 2012

chunav charch

जिनके काले वस्त्र थे ,मिले  सभी में दाग 
अफरातफरी में दिखे वे  सब काले नाग  
वे सब काले नाग, कुटिलता   के पर्याय  
सबने मिल कर रचे स्वार्थ भरे अध्याय  
कहे 'सुधाकर' उनको कडवी  दवा पिलाई 
दवा  पिलाने वाले को सुधि देर से आई . 

शनिवार, 14 जनवरी 2012

dohe

                           दोहे
                                  - डॉ. सुधाकर आशावादी
जंगल जंगल शांति बस्ती बस्ती आग
घर घर में अलगाव का वही विघटनी राग |

बस्ती बस्ती में उगा कुछ ऐसा आतंक
संस्कार बौने हुए क्या राजा क्या रंक |

जिस थाली में खा रहे करें उसी में छेद
कलियुग की महिमा यही है सतयुग से भेद |

आसमान छूने लगे महंगाई के बोल
नैतिकता को छोड़कर महंगी है हर तोल |

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

kale dhan ki khoj

चुनाव आयोग की कड़ी निगरानी में चुनावो में होने वाले काले धन के प्रयोग पर अंकुश लगाने का नायाब तरीका निकाला गया है,जिस कड़ी में नित्य ही पुलिस वाहनों की तलाशी ले रही है, जिसका लाभ भी मिल रहा है, भारी संख्या में धन मिल रहा है, किन्तु इस पड़ताल में आम आदमी दुखी है, अपनी गाढ़ी कमाई को किसी खास उद्देश्य से एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने वाले लोग सबूत के अभाव में अपना धन सरकारी कोष में जमा कराने के लिए विवश है, कई जगह इस अधिकार का प्रयोग गलत ढंग से भी हो रहा है.   

बुधवार, 4 जनवरी 2012

muktak

                          मुक्तक
चल रहे हैं दौर विष के  देवता  के आवरण  में
रात की काली लता है भोर के पहले  चरण में
देश का दुर्भाग्य चिंतन क्या भला तुलसी करेगा
साथ देते हैं जटायु  आज   के   सीता हरण में .
                                         - सुधाकर आशावादी 

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

rajneeti me rar

राजनीति में सब कुछ संभव है, जिसको गाली देते हुए राजनीति चमकाई जाती है, एक समय उसी को गले लगाकर पास बिठाने से परहेज़ नहीं किया जाता, उत्तर प्रदेश के चुनावी वातावरण  में ऐसा ही दृष्टिगत हो रहा है,दुसरे डालो से निकले गए गिरगिटो को सम्मान सहित टिकट परोसे जा रहे है, तथा अपने निष्ठावान  कार्यकर्ताओ की अवहेलना की जा रही है, राजनीति का यह रूप निसंदेह शर्मनाक है. 

रविवार, 1 जनवरी 2012

muktak

                                   ग़ज़ल
जंगलों में, बस्तियों में, आग है,   तूफ़ान है
आजकल अपने ही घर में आदमी मेहमान है

हमसफ़र वो क्या बनेगा ज़िक्र उसका क्या करें
इल्म है दुनिया का जिसको दर्द से अनजान है

जिंदगी मजदूर की अब चीखती फुटपाथ पर
लाश ढोती  भीड़ में  क्या एक  भी   इंसान है ?

बादलों में छिप न पायेगा 'सुधाकर'का वजूद
चाँदनी जी भर लुटाने में ही जिसकी शान है |

                          - डॉ. सुधाकर आशावादी 

lokpal ya jokpal

लोकपाल बिल को लेकर काफी उहापोह की स्थिति है, सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं,मगर सत्यता कुछ और नज़र आती है आम आदमी बखूबी समझता है, कि किस प्रकार से उसे मूर्ख बनाने का
प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि आज के दौर में कोई नहीं चाहता कि यह बिल पास हो, चाहे कॉंग्रेस हो अथवा भाजपा ,सपा हो या बसपा,कोई भी दल ऐसा नहीं है जो भ्रष्टाचार की दलदल में न धंसा हुआ हो, ऐसे में सभी एक दूसरे पर दोषारोपण करके बिल को लटकाने का षड्यंत्र रच रहे है, अन्ना भी अपने स्वार्थी सिपहसालारो कि हरकतों के सम्मुख बौने नज़र आ रहे हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता,कि भ्रष्टाचार जनमानस के रक्त में इतना रच बस गया है,कि उसे जड़ से समाप्त कर पाना  इतना आसान नहीं है ,निसंदेह जब तकतक भ्रष्टाचार  के विरूद्ध जनाक्रोश उत्पन्न नहीं होगा तथा नेक नीयत से इसका उपचार नहीं होगा तब तक लोकपाल पर संशय ही बना रहेगा.

                                                                                                - dr. सुधाकर आशावादी