बुधवार, 21 मार्च 2012

muktak

                   मुक्तक
नफरतें बोता रहा जो उम्र भर
नफरतों में उम्र भर जलता रहा
पर न घबराई सृजन की सोच भी
वो अकेला उम्र भर गलता रहा ।।
                   मुक्तक
भोर हुई तो टूटा आँखों का सपना
मीठी नींदों में कोई तो है अपना
आँख खुली तो अपनी अलग व्यथाएं हैं
पीड़ा में अब तो जीवन भर है खपना ।।
           =====  आशावादी 

muktak

                मुक्तक
भरी भीड़ में जो जी के जंजाल बने हैं
लोकतंत्र के लिए जो बड़े सवाल बने हैं
ऐसे खल नायक पर कैसे पार बसायें
राज काज में जो मन से कंगाल बने हैं ।
                  .................आशावादी 

शनिवार, 3 मार्च 2012

man ki baat

             मन की बात

                              - डॉ. सुधाकर आशावादी
मैंने सोचा अपने मन की बात कहूँ
पर किससे मैं अपनेपन की बात कहूँ ?

जिसको समझा मैंने अपना मित्र यहाँ
वो बेगाना कैसे उस से  ज़ज्बात कहूँ ?

दर्द सुना जिसने मेरा अपना बन कर
बिसराया उसने मैं कैसी घात कहूँ ?

जिससे मुझको कोई भी उम्मीद न थी
उसने साथ निभाया ये सौगात कहूँ ।

रक्त के रिश्तों से बढ़कर है प्रीत यहाँ
'सुधाकर'कैसे मन की सच्ची बात कहूँ ?