सोमवार, 28 जनवरी 2013


शुभ-रात्रि:++
++++++++
तुम्हे नहीं आना मत आओ ख़्वाबों में 
मैं तो सोऊंगा याद तुम्हारी ही लेकर 
मिलना हो तो आ जाना तुम ख़्वाबों में 
पर न आना अपना सत्य कभी खोकर ।।
- सुधाकर आशावादी 

शुभ-रात्रि:++
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तुम्हे नहीं आना मत आओ ख़्वाबों में 
मैं तो सोऊंगा याद तुम्हारी ही लेकर 
मिलना हो तो आ जाना तुम ख़्वाबों में 
पर न आना अपना सत्य कभी खोकर ।।
- सुधाकर आशावादी 

शुभ-रात्रि:++
++++++++
तुम्हे नहीं आना मत आओ ख़्वाबों में 
मैं तो सोऊंगा याद तुम्हारी ही लेकर 
मिलना हो तो आ जाना तुम ख़्वाबों में 
पर न आना अपना सत्य कभी खोकर ।।
- सुधाकर आशावादी 

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013


     क्या सोचकर सौंपा गणतन्त्र ?
- डॉ.सुधाकर आशावादी
 
देश हो अपना,यही था सपना सदा रहे स्वतंत्र  
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?
 
नहीं भान था उन्हें कि सत्ता दिखलाएगी खेल 
नहीं चाहिए भाईचारा न ही आपस में कोई मेल 
उसे चाह थी कुर्सी की सो अलगावी फसलें बोई 
तभी कलंकित लहू हुआ उनकी आत्मा थी रोई 
भगत सिंह और सुभाष वीर को भूल गए सब 
याद स्वार्थ है याद है कुर्सी और याद है मंत्र-तंत्र 
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?

देश की लुटती अब मर्यादा मर्यादित न राम हैं
नैतिकता व स्वछंदता में अब भीषण संग्राम है 
बात-बात में लाठी गोली खन्जर और तमंचे हैं 
मर्यादा अब तार-तार है खून सने सब पञ्जे हैं 
रिश्तों की मर्यादा भूले मानवता के सब हत्यारे 
सत्ता की खातिर नित बुनते नेता अब षड्यंत्र  
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?

दिशानायकों के चिंतन में नहीं दिशा का कोई वास 
सत्ता कुर्सी जोड़ तोड़ के होते हैं निसदिन अभ्यास 
देश का करते ये बंटवारा लेकर जाती-धर्म का नाम  
तब भी इनको चैन न आता उलटे सारे इनके काम 
अब विकास की बात नहीं बात है तो बस दाम की 
जनता को ही चक्रव्यूह में फांसने का फूँके हैं मन्त्र 
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?

सोमवार, 21 जनवरी 2013

मुक्तक
आदमी है नहीं आदमी आजकल
जातियों में बंटा आदमी आजकल
तुम जगत में सदा ऐसी बातें करो
आदमी सा लगे आदमी आजकल ।।
- सुधाकर आशावादी
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हदों के भीतर :
अपनी हदों में मैं रहूँ
अपनी हदों में तुम रहो
अपनी हदें न मैं तजूं
अपनी हदें ने तुम तजो
फांसला इतना रहे
तुममे और मुझमे यहाँ
कर्म ऐसे हों कि जिससे
न तुम लजाओ
न हम लजाएं ।।
-सुधाकर आशावादी 

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

muktak

मैंने कब चाहा कि तुमको अपना न मानूं
मैंने माना तुमको अपना,अपना ही ध्यानू
तुमसे ही सीखा हैं मैंने प्रीत का नया तराना
प्रीत परिभाषा में कैसे जीवन का अफसाना ।।
- सुधाकर आशावादी 
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++गुस्ताखी माफ़ ++
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वो जो आइना हज़ार बार देखता है 
उस चेहरे को बार-बार बदल कर 
चेहरे की किताब पर दिखलाता है 
वह भूल जाता है- 
चेहरा नहीं है उसकी वास्तविक पहिचान 
विचारों से उसका सारा जहान ।
सो-
अपने आप से तू प्यार कर
एक बार नहीं हज़ार बार कर
मगर ध्यान रहे इतना
अपनी सूरत पर मत इतरा
सूरत में तूने क्या है गढ़ा
यह तो किसी की निशानी है
सूरत तो तेरी जानी पहिचानी है
पर तेरी कहानी का सार
तेरी सीरत बताएगी
तेरी सूरत तब काम नहीं आएगी ।।
- सुधाकर आशावादी

बुधवार, 9 जनवरी 2013

मैं कलम का पुत्र करता हूँ कलम की वन्दना 
मैं सृजन का सूत्र उर में है सृजन की कामना 
मैं जगत अनुयायी लेकिन भीड़ का न अंश हूँ 
प्रीत-पथ पर अग्रसर ले नेह की प्रस्तावना ।।
=================आशावादी