सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

समाज के
दोगले चरित्रों को देखकर
यही लगता है
गिरगिट
घर घर में बसता है ।
- सुधाकर आशावादी 

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

एक सोच:
छोड़ो ...जाने भी दो ,,क्यों परेशान होते हो 
उसकी बातों से ...उसकी ह्रदय बींधती आलोचनाओं से 
---क्या करे ..बेचारा स्वयं से ही खफा है 
उसे सहारा दो ...उसकी आलोचनाओं का 
सकारात्मक अभिव्यक्ति से ज़वाब दो 
क्योंकि सभ्य समाज में ईंट का जवाब पत्थर नहीं होता ।
- सुधाकर आशावादी 
मुक्तक:
मन करता है मैं उपवन से फूल चुनूँ 
फूलों को ही चुनूँ नहीं मैं शूल चुनूँ 
सभी चाहते चुनना केवल फूलों को 
कौन सहेगा दर्द बाँटते शूलों को ?

रविवार, 17 फ़रवरी 2013


मन करता है -++
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मन करता है मैं उपवन से फूल चुनूँ 
फूलों को ही चुनूँ नहीं मैं शूल चुनूँ 
सभी चाहते चुनना केवल फूलों को 
कौन सहेगा दर्द बाँटते शूलों को ?

मुलाकात:
कोई तो बात है 
ग़लतफ़हमी दूर नही होती 
कोई पास नहीं होता 
तुम दूर नहीं होती ।
कितना भी मन को समझाऊं 
नादान फिर भी नहीं समझता 
कहता है -
चाहे पल भर की हो मुलाक़ात 
कभी अधूरी नहीं होती ।
- सुधाकर आशावादी 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

मुक्तक:
व्यक्ति की पूजा यहाँ है कर्म को न पूजते
हैं कुटिल मन-भावनाएं मर्म को न पूजते
आज उपदेशक बहुत देते हैं परउपदेश जो
है अधर पर धर्म लेकिन धर्म को न पूजते ।।
- सुधाकर आशावादी 

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013


मुक्तक  :
कौन सुनाये अब कबीर सी खरी-खरी 
कौन सुनाए गोपी की गाथा पीर भरी 
हैं विलग सी संवेदनायें कवि ह्रदय में  
होगा नव-सृजन नव-रचना क्षीर भरी ।।
- सुधाकर आशावादी  

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013


मुक्तक :
साँप-सीढ़ी, ऊँच- नीच या छुआ-छाई 
बचपन में न बात समझ में कुछ आई 
जब से होश संभाला कुछ हम बड़े हुए 
हमें  जिन्दगी बस इनमें उलझी पाई ।।
- सुधाकर आशावादी 

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

जिंदगी की पुस्तक में क्या मैं आज लिखूँ
अपना कल और आज का अहसास लिखूँ
सोचता हूँ मुश्किल है सच को सच कहना
सो अच्छा लगता है मुझे अब चुप रहना  ।।
- सुधाकर आशावादी

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013


बसन्त की चाह में ;;;;
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जब पतझर आगमन से झरेंगे शाख से पत्ते 
तब-तब हरा होने के लिए मचलेगी कामनाएं 
फिर आएगा मधुमास बासन्ती वसन पहिन 
तब आएगी याद भरेगी गंध हमारी श्वांसों में । 
मत आना तुम कभी सामने अब मेरे 
बरसों बीते याद ह्रदय में बसी हुई 
यदि हुई साकार समझ न पाऊंगा 
तुम हो या मेरा मन है भ्रमित कहीं ?
तुम रहना बस मेरी मधुरिम यादों में  
मेरे अन्तस के प्रीत भरे मधुमासों में 
चाहूँ हर पल रचूँ तुम्हारे गीत प्रिये 
सो सपनों में आते रहना मीत प्रिये ।।
- सुधाकर आशावादी 
एक सच यह भी :
मैंने यूँ ही सच कह दिया मज़ाक मज़ाक में 
और तुम बुरा मान गए 
सच ...आज का सच ही मज़ाक है 
क्योंकि झूठ जो बन चुका है 
आज का हसीन सच 
सो कड़वा सच अपनी कडवाहट में ही 
दम तोड़ने हेतु विवश है 
तो बताओ ...आखिर क्यूँ तुम्हे मजाक में भी 
सच स्वीकार क्यों नहीं ....?
- सुधाकर आशावादी 
मुक्तक  :
चाँद निहारा मैंने अपने घर-आँगन से 
भरे अमृत के कलश उसी के दर्शन से 
धवल चाँदनी ने चंदा से मुझे मिलाया 
प्रीत पगी यादों ने सारी रात जगाया ।।
- आशावादी    
chaand nihara maine apne ghar aangan se 
bhare amrit ke kalash usi ke darshan se 
dhawal chaandni ne chanda se mujhe milaya 
preet pagi yadon ne sari raat jagaya .
- SUDHAKAR AASHAWADI 
मुक्तक :
हम रहे कुछ विवादों में उलझे हुए 
कहते स्वयं को रहे हम सुलझे हुए 
यदि तुम गलत हम भी सुधरे नहीं 
आओ देखें तनिक पीछे मुड़ते हुए ।।
- सुधाकर आशावादी 
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हिचकियाँ पास लाती हैं यादें तेरी 
कनखियाँ भी बुलाती हैं यादें तेरी 
घूमता हूँ कभी प्रेम उपवन में मैं 
पुष्प गंधों से आती हैं यादें तेरी ।।
-  सुधाकर आशावादी