गुरुवार, 4 जुलाई 2013

jwalant prashn

....ज्वलंत प्रश्न 
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बहुत बुरा लगता है 
जब दोगुलेपन की बात होती है
सुविधाओं की धर्म और जाति के नाम पर 
बंदरबांट होती है । 
मैं विरोध करूँ भी तो कैसे 
जब सियासत की ये जात होती है ।
मन करता है विरोध करूँ 
क्यों बांटा गया है आदमी को 
जाति और धर्म की संकीर्णताओं में । 
क्यों लिखा जाता है 
उसके नाम के सामने जाति का नाम ?
अगड़ा, पिछड़ा या दलित होने पर 
क्यों अगड़े की अवहेलना करके 
दिया जाता है अन्यों को विशिष्ट सम्मान ?
क्या यही है देश की 
धर्मनिरपेक्ष और जातिनिर्पेक्ष लोकहित भावना 
क्या इसमें नहीं झलकती कोई दुर्भावना ?
फिर काहे लोक कल्याण का दम भरते हो 
जब लोक कल्याण की बात न कोई करते हो । 
जाने वह दिन कब आएगा 
जब विघटनकारी संकीर्णताओं से उबरकर 
देश को न्यायकारी समता 
और समानता की पटरी पर दौड़ाया जायेगा ? 
- सुधाकर आशावादी