बुधवार, 27 अगस्त 2014

sudhasha: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहींकाम कुछ भी नहीं ...

sudhasha: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं
काम कुछ भी नहीं ...
: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं काम कुछ भी नहीं फिर भी फुर्सत नहीं अंधी गलियों में जाने क्या ढूंढते हम रहे   अर्थ की चाह में हम को फ...

sudhasha: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहींकाम कुछ भी नहीं ...

sudhasha: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं
काम कुछ भी नहीं ...
: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं काम कुछ भी नहीं फिर भी फुर्सत नहीं अंधी गलियों में जाने क्या ढूंढते हम रहे   अर्थ की चाह में हम को फ...

sudhasha: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहींकाम कुछ भी नहीं ...

sudhasha: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं
काम कुछ भी नहीं ...
: आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं काम कुछ भी नहीं फिर भी फुर्सत नहीं अंधी गलियों में जाने क्या ढूंढते हम रहे   अर्थ की चाह में हम को फ...
आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं
काम कुछ भी नहीं फिर भी फुर्सत नहीं
अंधी गलियों में जाने क्या ढूंढते हम रहे  
अर्थ की चाह में हम को फुर्सत नही।
= सुधाकर आशावादी

सोमवार, 25 अगस्त 2014

मुक्तक :

भटके कदमों से कैसे चल पायेंगे
अपनी मंजिल कैसे यूँ हम पाएंगे
छोड़ो अपने सभी आग्रह पूर्वाग्रह
यूँ जीवन नौका हम खेते जाएंगे।
- सुधाकर आशावादी