शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

मुक्तक  :

अँखियों से लरजी शर्म और छुअन का स्पंदन
आँखों आँखों होता मन से वन्दन अभिनन्दन
दूर हो गया अब स्वयं से स्वयं का ही बतियाना
जाने कैसे लुप्त हुआ रिश्तों का पावन चन्दन ।।
- सुधाकर आशावादी

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

कैसी संध्या कैसा सुप्रभात :
दूध से वंचित दुधमुंहे बच्चे / गौ हत्या से देश में होती गायों की कमी। अन्य दुधारू पशुओं का अंधाधुंध कटान।
गौ वंशीय पशुओं के हत्यारों द्वारा पुलिस चौकियों पर हमला। कानून के रखवालों के लिए स्वयं की रखवाली ही कठिन हो गयी है , सत्ता गौ हत्यारों की संरक्षक बनकर गूंगी, अंधी, बहरी है। कम्बख्तों ऐसी भी क्या सियासत , जो दुधमुंहे बच्चों के मुँह से दूध भी छिनवा रहे हो ?
- सुधाकर आशावादी

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

देश की पहिचान किस से कौन जाने कौन समझे
देश की अब शान किस से कौन जाने कौन समझे
देश का अपमान जिनकी है यहाँ कुत्सित सियासत
देश का अभिमान किस से कौन जाने कौन समझे ?
- सुधाकर आशावादी