बुधवार, 7 सितंबर 2016

लघुकथा :
                                                               तमाशा

मदारी अपना थैला भिन्न भिन्न लुभावनी चीजों से भरने लगा।  उसे तमाशा दिखाने जी जाना था।
भीड़ सम्मुख थी , उसने डुगडुगी बजाई। भीड़ कौतुहल से मदारी के करतब देखने लगी। मदारी ने पहले लेपटॉप निकाला , भीड़ ने तालियाँ बजाई , फिर कन्या विद्या धन , उसके बाद अल्पसंख्यकों की पहिचान करने के लिए हाथ उठवाये।  भीड़ तमाशबीन थी। वह मदारी की चाल समझने लगी , कि मदारी उन्हीं के पैसे से करतब दिखा रहा है।
अंततः मदारी का खेल छोड़कर वे जाने लगे, जिनके लिए उसने लुभावनी चीजे थैले से निकाली ही नहीं थी।  मदारी भी कब हार मानने वाला था। भीड़ के सम्मुख प्रस्ताव रखा - 'यदि मुझे अगले बरसों में भी तमाशा दिखाने की मंजूरी दोगे , तब मैं सभी के लिए अपने पिटारे से स्मार्टफोन निकाल कर दूंगा।'
भीड़ आंकलन करने लगी। क्या स्मार्टफोन के बदले मदारी को मतलब सिद्ध करने का एक और अवसर दिया जाय या नहीं ? तमाशा अब भी जारी था। मदारी के अन्य परिजन भी अलग अलग नुक्कड़ों पर अपनी पोटली लिए डुगडुगी बजाने में व्यस्त थे।
- सुधाकर आशावादी