sudhasha
बुधवार, 31 जनवरी 2018
खुशनसीब हूँ , जो तूने मन की बात सुनी
उससे पूछ जिसकी किसी ने कुछ न सुनी .
@ सुधाकर आशावादी
धड़कनों को सुनों मत धड़कने दो
यहीं हैं जो देह का वजूद बनाती हैं .
@ सुधाकर आशावादी
मंगलवार, 9 जनवरी 2018
उसने गैरों में जाकर बुराई की अपने घर की
जैचंद न कहूँ तो क्या कहकर पुकारूँ उसको ?
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)