शनिवार, 31 दिसंबर 2011

muktak

तुम्हे जीना नहीं आया , हमें मरना नहीं आया
कडकती बिजलियाँ सम्मुख हमें डरना नहीं आया
हजारो अवसरों पर मौत से लड़कर भी जिंदा हैं
गिरे हैं और संभले हैं मगर गिरना नहीं भाया |

घोर कुशासन भ्रष्टाचारी मारामारी है
विषम विषमताओं में जीना ही लाचारी है
किससे करें शिकायत किससे समाधान मांगे
सत्ता सिंघासन पर बैठी अब गांधारी है .
                           -डॉ. सुधाकर आशावादी 

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