सोमवार, 21 जनवरी 2013

मुक्तक
आदमी है नहीं आदमी आजकल
जातियों में बंटा आदमी आजकल
तुम जगत में सदा ऐसी बातें करो
आदमी सा लगे आदमी आजकल ।।
- सुधाकर आशावादी
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हदों के भीतर :
अपनी हदों में मैं रहूँ
अपनी हदों में तुम रहो
अपनी हदें न मैं तजूं
अपनी हदें ने तुम तजो
फांसला इतना रहे
तुममे और मुझमे यहाँ
कर्म ऐसे हों कि जिससे
न तुम लजाओ
न हम लजाएं ।।
-सुधाकर आशावादी 

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