मंगलवार, 7 मई 2013

muktak

एक मुक्तक प्रस्तुत है -
शुभ-रात्रि:
रात आती है तो मिट जाती है दिन की थकन 
न भोर की चिंता न याद है अब पेट की अगन  
चलो भूल जाएं दिन में बीते जो  गिले शिकवे 
मिले सौगात स्वप्निल ललके जीने की लगन ॥ 
---------आओ चले नींद के मीठे सफ़र पर------
- सुधाकर आशावादी 

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