रविवार, 5 फ़रवरी 2012

घर के बासन भी अब खनखनाने लगे
दर  ये   अलगाव के खटखटाने लगे
प्यार  घटने लगा है यहाँ इस कदर
लोग मिलने में भी नकनकाने लगे।

पीड़ा में दर्द की सी चुभन ही नहीं
आग में आग की सी अगन ही नहीं
जिंदा लाशें बने लोग फिरते यहाँ
खून में खून की सी तपन ही नहीं ।।
                         - डॉ. सुधाकर आशावादी

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