मंगलवार, 12 जनवरी 2016

इंटरनेट के व्यवधान के कारण विगत अनेक दिवसों से पोस्ट नहीं कर पा रहा हूँ। विश्व पुस्तक मेले में साहित्यकारों और किताबों की भीड़ में अनेक गुमशुदाओं को खोज रहा था, मिले वो जो यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहते हैं। अख़बारों में न सही फेसबुक पर ही सही , किन्तु कुछ वहाँ होते हुए भी दुर्लभ दर्शनीय बने रहे।  बाद में चेहरे की किताब पढ़ी तो पता चला कि वे भी वहीँ थे।
- सुधाकर आशावादी

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