गुरुवार, 8 नवंबर 2012

कृत्रिमता से दूर एक नन्हा सा दिया
सोचता है क्या भला कर पाऊंगा मैं
क्या धरा का तम हरूँगा
या स्वयं ही मैं मिटूंगा ?
संग लेकर तेल बाती चल पड़ा
हौंसला लेकर बड़ा वह चल पड़ा
तम हरा उसने अँधेरी कोठरी का
और दिखलाया असर अपने करम का
जिसने बितराया उसे ऊंची हवेली में
वो भी टिक पाया नहीं कुछ देर तक भी
वह दिया था जिसने सीखा था स्वयं ही
दहना दह कर और के हित सुख संजोना
दूसरो के सुख में स्व अस्तित्व खोना ।।
---------------सुधाकर आशावादी 

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