शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

मुक्तक :

कुसूर आईनो का नहीं जो आईने बदल दें
सच तो यह है हमने उनमें झाँका ही नहीं
गुड्डे गुड़िया के खेल यहाँ अब कौन खेले
प्रीत के खेल का मर्म हमने जाना ही नहीं।
- सुधाकर आशावादी

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

मुक्तक
किसे दोष दूँ किस किस के गुनाह गिनाऊँ
गुनहगार मैं भी कम नहीं कहाँ पनाह पाऊँ
अंगुलियाँ उठाना तो हर किसी को आता है
स्वयं पर उठी अँगुलियों को कहाँ ले जाऊँ ?
- सुधाकर आशावादी