शनिवार, 31 दिसंबर 2011

nav varsh shubhkamna

समय चक्र का गठबंधन प्रगाढ़ हुआ जाता है
अबाध गति से पेंग बढ़ता नूतन वर्ष आता है
आओ विचारे कि अतीत में क्या खोया क्या पाया
यथार्थमयी चिंतन हित  नूतन वर्ष है आया
आओ रचें नव गीत बुने न श्रृंगारिक सपने
आज संजोये मृदुभाव सुमन फिर जीवन में अपने .
                              - सुधाकर आशावादी 

muktak

तुम्हे जीना नहीं आया , हमें मरना नहीं आया
कडकती बिजलियाँ सम्मुख हमें डरना नहीं आया
हजारो अवसरों पर मौत से लड़कर भी जिंदा हैं
गिरे हैं और संभले हैं मगर गिरना नहीं भाया |

घोर कुशासन भ्रष्टाचारी मारामारी है
विषम विषमताओं में जीना ही लाचारी है
किससे करें शिकायत किससे समाधान मांगे
सत्ता सिंघासन पर बैठी अब गांधारी है .
                           -डॉ. सुधाकर आशावादी 
देश में स्वयं को दूध का धुला सिद्ध करने का जो चलन प्रारंभ हुआ है, उससे लगता है ,की सियासत में बैठे लोग आम आदमी को मुर्ख समझते हैं,उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व मंत्रियों को हटाने का जो खेल चल रहा है, उससे आम आदमी अनजान नहीं है, स्थिति स्पष्ट है कि आम आदमी इस शासन में फैले भ्रष्टाचार को समझ चुका है, वह जानता है कि बिना मुखिया की शय के किसी प्रकार का भी भ्रष्टाचार पनप नहीं सकता, फिर क्या वही मंत्री दोषी हैं, जिन्हें हटाया जा रहा है, क्या उनके मंत्रित्व काल में जितने भी भ्रष्टाचार हुए,क्या उनकी जानकारी या हिस्सेदारी मुखिया की जानकारी में नहीं थी, उस सन्दर्भ में सजा उस समय क्यों दी जा रही है,जब चुनाव सर पर
हैं,क्या इससे इन राजनेताओं की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं हो रही है, इस प्रकार की कारवाही से मुखिया जनमानस को कौन सा सन्देश देना चाहती है, क्या इन भ्रष्टाचारी मंत्रियों के कारनामो की पोल देर से खुली, क्या जो वर्तमान में मुखिया के अगल बगल के मंत्री हैं ,सभी साफ़ सुथरे और दूध से धुले हैं, अन्यथा जनमानस को अतना नासमझ क्यों समझा जा रहा है, सच्चाई सभी जानते है, किन्तु इस सच्चाई को खुलकर कहने से परहेज़ किया जा रहा है,ऐसे माँ सवाल यही है कि सियासत में क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान उस समय चलाया जाता है ,जब पानी सर से गुज़र जाता है ?