शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

तू भी स्वस्थ है और मैं भी स्वस्थ हूँ   
टाँगें तेरी भी सलामत हैं और मेरी भी 
अपनी मेधा पर तू भी गर्वित है ,मैं भी 
अपने आप को तू अति ज्ञानी दर्शाता है   
फिर बैसाखियाँ किस लिए आजमाते है ? 
चल उठ दौड़ें मैदान में तू भी और मैं भी। 
- सुधाकर आशावादी

मंगलवार, 2 जून 2015

मुक्तक 
 
सम्बन्ध तेरे मेरे ये देह के रिश्ते हैं
रिश्ते हैं गंभीर मगर नेह के रिश्ते हैं
तर्क की न बात कर न लेन देन की
तराजू पे तोलोगे तो खाक ये रिश्ते हैं।
- सुधाकर आशावादी

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

मुक्तक :
प्राणी प्राणी जानता है परमसत्ता का वजूद 
दंभ में स्वीकारता वह सिर्फ अपना ही वजूद 
मंदिर मस्जिद में उलझा अब भ्रमित आदमी 
भूल बैठा है प्रभु बिन कुछ नहीं उसका वजूद। 
- सुधाकर आशावादी

गुरुवार, 19 मार्च 2015

मुक्तक :
मौन है, पर दह रहा अहसास का दरिया
सब व्यथाएं सह रहा अहसास का दरिया
तप्त धरती बंजर रिश्ते बर्फ सी संवेदना
हर हृदय में बह रहा अहसास का दरिया।
- सुधाकर आशावादी

मंगलवार, 17 मार्च 2015

हर कोई अपनी मनमानी पर अमादा है
कहीं उच्छ्रंखल आचरण, कहीं मर्यादा है
मित्रो जीवन सिर्फ नियम अनुशासन से
जिस से प्रकृति ने भी स्वयं को साधा है।
- सुधाकर आशावादी

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

मैं तुम्हे आवाज़ दूंगा पर न आना तुम
हो सके तो दूर से ही बस रिझाना तुम
सच यही है पास हो तो मोल क्या जानूं
दूर होकर अपनी कीमत आजमाना तुम।
- सुधाकर आशावादी

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

सिर्फ एक अपील :
इतना भी न इतराओ मित्र कि धरती पर पाँव न हों
सूरज भी खफा हो जाय और पेड़ों की भी छाँव न हो।
- सुधाकर आशावादी

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

चंद पंक्तियाँ > भूख के नाम

भूख लिखता हूँ प्यास लिखता हूँ
तभी तो मैं कुछ ख़ास दिखता हूँ।
सही कीमत यदि नहीं मिलती
मित्रों फिर मैं उदास दिखता हूँ।
राष्ट्र-पूजा मेरा मेरी इबादत हैं
रोज मैं आमो-ख़ास लिखता हूँ।
खूब नफ़रत मुझे सियासत से
फिर भी मैं आस पास फिरता हूँ।
भूखों की भूख लिख लिख कर
मैं तो काजू बादाम चरता हूँ।
भूख के चित्र मुझको भाते हैं
संग उनके मैं रोज तरता हूँ।
- सुधाकर आशावादी

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

भूख से बेबस गरीबी दिन में सपने देखती है
सिर्फ सपनों में सही वह रोटी से ही खेलती है
अब सियासत की तिजारत बढ़ गई इस तरह
सपनों का देकर छलावा हसरतों से खेलती है।
- सुधाकर आशावादी
मुक्तक :
है खुला बाज़ार खुलकर शर्म अपनी बेचिए
है सियासत नग्न खुलकर शर्म अपनी बेचिए
बेहया बेशर्म बदनीयत किसे कहते हैं दोस्त
ढीठ बनकर मुस्कराकर शर्म अपनी बेचिए।
- सुधाकर आशावादी