शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

मैं तुम्हे आवाज़ दूंगा पर न आना तुम
हो सके तो दूर से ही बस रिझाना तुम
सच यही है पास हो तो मोल क्या जानूं
दूर होकर अपनी कीमत आजमाना तुम।
- सुधाकर आशावादी

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

सिर्फ एक अपील :
इतना भी न इतराओ मित्र कि धरती पर पाँव न हों
सूरज भी खफा हो जाय और पेड़ों की भी छाँव न हो।
- सुधाकर आशावादी

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

चंद पंक्तियाँ > भूख के नाम

भूख लिखता हूँ प्यास लिखता हूँ
तभी तो मैं कुछ ख़ास दिखता हूँ।
सही कीमत यदि नहीं मिलती
मित्रों फिर मैं उदास दिखता हूँ।
राष्ट्र-पूजा मेरा मेरी इबादत हैं
रोज मैं आमो-ख़ास लिखता हूँ।
खूब नफ़रत मुझे सियासत से
फिर भी मैं आस पास फिरता हूँ।
भूखों की भूख लिख लिख कर
मैं तो काजू बादाम चरता हूँ।
भूख के चित्र मुझको भाते हैं
संग उनके मैं रोज तरता हूँ।
- सुधाकर आशावादी

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

भूख से बेबस गरीबी दिन में सपने देखती है
सिर्फ सपनों में सही वह रोटी से ही खेलती है
अब सियासत की तिजारत बढ़ गई इस तरह
सपनों का देकर छलावा हसरतों से खेलती है।
- सुधाकर आशावादी
मुक्तक :
है खुला बाज़ार खुलकर शर्म अपनी बेचिए
है सियासत नग्न खुलकर शर्म अपनी बेचिए
बेहया बेशर्म बदनीयत किसे कहते हैं दोस्त
ढीठ बनकर मुस्कराकर शर्म अपनी बेचिए।
- सुधाकर आशावादी