sudhasha
बुधवार, 25 जुलाई 2012
गीतांश
जिन्दगी है एक विकट उपहास
और हम हैं महज़ कालीदास ।
अपनी जड़ को खोदते हैं वृक्ष
स्वार्थ पूरित मंत्रणा मय कक्ष
विद्वता को मिल गया बनवास
और हम हैं महज़ कालीदास ।।
::एक मुक्तक ::
जानता था बात मेरी मान लोगे
जब कथानक का तनिक भी भान लोगे
फिर करोगे तुम समीक्षा अपनेपन
की
तब हकीकत तुम भी मेरी जान लोगे ।
saawan
जाने किस को किसकी याद आई कि चली पुरवाई
जाने किस विरहन का दिल तरसा कि पानी बरसा
झूम के लो आया सावन झूम के ....
आओ सावन में बारिस का स्वागत करें ...
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