sudhasha
शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014
:: मुक्तक ::
एक चेहरा फेसबुक पर दूसरा जो घर में है
एक अधर मुस्कान धारे, दूसरा अधर में है
बात चेहरे की है चेहरा कौन किसका देखता
एक है दूजो की खातिर दूसरा अंतस में है।
- सुधाकर आशावादी
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014
मुक्तक
युवा अवस्था में लगे जनम जनम की प्यास
प्रौढ़ावस्था में ही मिले सदा तृप्ति का आभास
तृप्ति का आभास कि जीवन सार बताये
यह जीवन है अनमोल व्यर्थ न इसे गंवाएं।
कहे 'सुधाकर' बचपन यौवन फिर न आये
मगर बुढ़ापा जिसमे अनुभव खान समाये।
- सुधाकर आशावादी
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014
:: : : ज़िंदगी की किताब :::::
ज़िन्दगी की किताब मैं सुबहो शाम लिखता हूँ
कभी कुछ ख़ास तो कभी कुछ आम लिखता हूँ
सुबह कर्म पथ पर अग्रसर मैं काम लिखता हूँ
शाम को बिस्तर पे होता हूँ , आराम लिखता हूँ
फिर भी रहता शेष जिसको मैं लिख नहीं पाता
अधूरेपन के किस्से ही तो मैं तमाम लिखता हूँ ।
- सुधाकर आशावादी
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014
जीवन तो चलता रहता है कभी धूप में कभी छाँव में
दिनचर्या चलती रहती है कभी शहर में कभी गाँव में
आना-जाना सुख-दुःख सारे रहते पल-पल जीवन संग
पतवार नियन्ता थामे सबकी, तुम तो जीवन नाव में।
- सुधाकर आशावादी
बुधवार, 19 फ़रवरी 2014
आशादीप जलाएं
जाओ नहीं सुननी है मुझे तुम्हारी कोई भी बात
तुम्हे नहीं सौंपनी है अब अपने प्यार की सौगात
तुम अपनी देह रूप सौंदर्य पर इतना न इतराओ
अपने यथार्थ को समझ इस धरा पर उतर आओ।
तुम सच जानती हो उम्र झूठ की लम्बी नहीं होती
कृत्रिम औपचारिकताएं कभी सम्वेदना नहीं बोती।
सो क्यों रहती हो भ्रमित सी इस मृगमरीचिका में
कुछ नहीं शेष छीजते सम्बन्धों की विभीषिका में।
अमावस से रीते रिश्तों में आओ आशादीप जलाएं
पूनम सी रातों सा चहकें प्रीत राह पर कदम बढ़ाएं।
- सुधाकर आशावादी
रविवार, 2 फ़रवरी 2014
मुक्तक :
दिनचर्या कैसी हो मेरी यह तो मैं भी जानता हूँ
पर आधुनिकता में मित्रों सत्य न स्वीकारता हूँ
आत्मीयता से विलग अब खोखला सा आचरण
दूसरों के अनुकूल चल कर मैं स्वयं से हारता हूँ।
- सुधाकर आशावादी
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