मुक्तक
हम सियासत के खिलौने हैं
संकीर्ण चिंतन के बिछौने हैं
हम सियासत के बने हैं दाँव
सत्ता सम्मुख आज बौने हैं ।।
मुक्तक
संकीर्णता के दायरे से बाहर आओ
विकलांगता के दायरे में मत समाओ
है भरोसा बाजुओं की शक्ति पर यदि
स्वाभिमानी बन स्वयं को आजमाओ ।।
सोमवार, 27 अगस्त 2012
हादसों के शहर में रोज होते हादसे
बढ़ रही हैं दूरियां बढ़ रहे हैं फांसले
आज किसको कैसे कहें अपना यारों
बढ़ गए हैं आज देखो नफरतों के हौंसले
रविवार, 26 अगस्त 2012
ग़ज़ल
भूख लिख प्यास लिख
बेदम की आवाज़ लिख
भूखे को रोटी मिल जाए
ऐसा कुछ आगाज़ लिख
भूख गरीबी बेकारी में
जीने का अंदाज़ लिख
जितना चाहे उतना लिख ले
पर रोटी का ग्रास लिख ।।
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
मुक्तक
घर की बैठक में पापा का रौब ज़माना
और चौके में मम्मी का ही आना जाना
बहुत दिनों के बाद याद उनकी आई है
कैसे सीखें अपनेपन की प्रीत निभाना ।।
गीतांश
प्रीत पगी है घर की पायल
पर दुनियां पैसे की कायल
बीच बजारिया पायल सजती
कोठे पर भी पायल बजती
कहने को पायल बंधन है
पायल पायल में अंतर है ।