मुक्तक
जाने कितने जतन किये और बोले कितने झूठ
धन की चाहत रही अधूरी, ज्यों कटे वृक्ष के ठूँठ
धोखा दिया स्वयं को, न रिश्तों का सम्मान किया
जाने किस करवट अब बैठे अपने भाग्य का ऊँट ?
- सुधाकर आशावादी
जाने कितने जतन किये और बोले कितने झूठ
धन की चाहत रही अधूरी, ज्यों कटे वृक्ष के ठूँठ
धोखा दिया स्वयं को, न रिश्तों का सम्मान किया
जाने किस करवट अब बैठे अपने भाग्य का ऊँट ?
- सुधाकर आशावादी
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