sudhasha
गुरुवार, 5 सितंबर 2013
मुक्तक :
विकृति और संत सरीखा आचरण
है विद्रूपित ज़िन्दगी की व्याकरण
झाँकिये अपने सभी अंतस ह्रदय में
किसने नहीं ओढ़ा यहाँ यह आवरण ?
- सुधाकर आशावादी
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