मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

लघुकथा :

पहिचान 
- सुधाकर आशावादी 

पड़ौस के जनपद से सांप्रदायिक हिंसा की ख़बरें वातावरण में अपना अस्तित्व दर्शा रही थी । आस पास के क्षेत्रों में भी आपसी भाईचारे और सदभाव पर संकट के बादल मंडराने लगे । मुझे दूसरे शहर में जाना था , बस अड्डे तक पहुँचने के लिए मुझे उस बस्ती से गुजरना अनिवार्य था , जो दूसरे संप्रदाय के लोगों की थी , मैंने अपनी धार्मिक मान्यताओं एवं परम्पराओं के अनुसार धार्मिक चिन्ह शरीर पर धारण किये हुए थे , जो मुझे सम्प्रदाय विशेष का प्रदर्शित करने में समर्थ थे। मैं समझ नही पा रहा था , कि तनाव की स्थिति में उस क्षेत्र से होकर कैसे गुजरा जाय ? सो मैंने घर से निकलते ही अपनी पहिचान प्रदर्शित करने वाले चिन्हों को शरीर से अलग करना शुरू कर दिया । मार्ग में तनाव अवश्य था , किन्तु पहिचान चिन्हों की ओर संभवतः किसी का ध्यान नहीं था । सभी सहमे सहमे से नज़र आ रहे थे , मगर पहिचान चिन्ह इंसानों में सम्प्रदाय विशेष के प्रतीक चिन्ह प्रतीत होकर यह जताने में समर्थ थे कि इन के कारण इंसान अपनी असल पहिचान कहीं न कहीं खो चुका है । 

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