मुक्तक
देश के कोने कोने में सबसे कह दो आबाद रहें
मानवता की रक्षा का पाठ उन्हें बस याद रहे।
अपनी सीमाओं में विस्तृत भारत है घर अपना
यही यथार्थ है मित्रों नहीं तनिक भी यह सपना
समय चुनौती का है मानवता का सम्मान करो
कटी जली व भूली बिसरी बातों का न भान करो
स्वर्ग धरा का कैसे संवरे कैसे हो मानव कल्याण
बुरे वक्त में ही होती है अपने अपनों की पहचान।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें