क्या सोचकर सौंपा गणतन्त्र ?
- डॉ.सुधाकर आशावादी
देश हो अपना,यही था सपना सदा रहे स्वतंत्र
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?
नहीं भान था उन्हें कि सत्ता दिखलाएगी खेल
नहीं चाहिए भाईचारा न ही आपस में कोई मेल
उसे चाह थी कुर्सी की सो अलगावी फसलें बोई
तभी कलंकित लहू हुआ उनकी आत्मा थी रोई
भगत सिंह और सुभाष वीर को भूल गए सब
याद स्वार्थ है याद है कुर्सी और याद है मंत्र-तंत्र
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?
देश की लुटती अब मर्यादा मर्यादित न राम हैं
नैतिकता व स्वछंदता में अब भीषण संग्राम है
बात-बात में लाठी गोली खन्जर और तमंचे हैं
मर्यादा अब तार-तार है खून सने सब पञ्जे हैं
रिश्तों की मर्यादा भूले मानवता के सब हत्यारे
सत्ता की खातिर नित बुनते नेता अब षड्यंत्र
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?
दिशानायकों के चिंतन में नहीं दिशा का कोई वास
सत्ता कुर्सी जोड़ तोड़ के होते हैं निसदिन अभ्यास
देश का करते ये बंटवारा लेकर जाती-धर्म का नाम
तब भी इनको चैन न आता उलटे सारे इनके काम
अब विकास की बात नहीं बात है तो बस दाम की
जनता को ही चक्रव्यूह में फांसने का फूँके हैं मन्त्र
क्या सोचकर वीर शहीदों ने सौंपा हमें गणतंत्र ?
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