सोमवार, 18 जनवरी 2016

पुस्तक मेला संपन्न हुआ। कुछ आत्म मुग्ध रचनाकारों ने अपने लेखन को सराहा। अपने आपको विशिष्ट लेखक की संज्ञा देकर जता दिया कि कुछ साहित्यिक विधाएं केवल उन्हीं की बपौती हैं। कुछ नामधारी सहज रचनाकारों के विचारों ने उनके भीतर के रचनाकार के दर्शन कराये। बहरहाल फेसबुक मित्रों ने अनेक संभावनाओं को जन्म देकर हुंकार भरी है कि लेखन किसी ख़ास की ही बपौती नहीं रह गया है। चिंतन का आकाश असीम है।
- सुधाकर आशावादी

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