sudhasha
बुधवार, 19 जून 2013
मुक्तक :
आज बौने हो गये हैं देह के रिश्ते
और अपनापन सहेजे नेह के रिश्ते
स्वार्थ की आँधी, प्रलय, तटबंध टूटे
दूर अपनों से हुए हैं गेह के रिश्ते ॥
- सुधाकर आशावादी
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