बुधवार, 19 जून 2013

कुछ पंक्तियाँ :

तू नहीं और सही और नहीं और सही 
कुछ तूने भी कही कुछ मैंने भी कही 
कुछ तूने भी सही कुछ मैंने भी सही 
फिर भी कुछ बातें रह गयी अनकही । 
अब रूठ के जाना था तो दगा क्यों दी मुझको 
लिव इन रिलेशन था सिर्फ सजा क्यों मुझको ?
एक सवाल बार बार मेरे जेहन में ये आता है 
मुई सियासत का, रिश्तों से क्यों ना नाता है ?

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