sudhasha
शनिवार, 9 नवंबर 2013
मुक्तक
तन्हा रातों में जिसकी बस याद सताती है
जिसकी यादें रह रह कर मुझको भरमाती हैं
कभी न समझा उसको, इक अज़ब पहेली है
जाने क्यों कर यादों में आकर बस जाती है ।
- सुधाकर आशावादी
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