रविवार, 2 फ़रवरी 2014

मुक्तक :
दिनचर्या कैसी हो मेरी यह तो मैं भी जानता हूँ
पर आधुनिकता में मित्रों सत्य न स्वीकारता हूँ
आत्मीयता से विलग अब खोखला सा आचरण 
दूसरों के अनुकूल चल कर मैं स्वयं से हारता हूँ।
- सुधाकर आशावादी

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