भूख से बेबस गरीबी दिन में सपने देखती है
सिर्फ सपनों में सही वह रोटी से ही खेलती है
अब सियासत की तिजारत बढ़ गई इस तरह
सपनों का देकर छलावा हसरतों से खेलती है।
- सुधाकर आशावादी
सिर्फ सपनों में सही वह रोटी से ही खेलती है
अब सियासत की तिजारत बढ़ गई इस तरह
सपनों का देकर छलावा हसरतों से खेलती है।
- सुधाकर आशावादी
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