दोहे
- डॉ. सुधाकर आशावादी
जंगल जंगल शांति बस्ती बस्ती आग
घर घर में अलगाव का वही विघटनी राग |
बस्ती बस्ती में उगा कुछ ऐसा आतंक
संस्कार बौने हुए क्या राजा क्या रंक |
जिस थाली में खा रहे करें उसी में छेद
कलियुग की महिमा यही है सतयुग से भेद |
आसमान छूने लगे महंगाई के बोल
नैतिकता को छोड़कर महंगी है हर तोल |
- डॉ. सुधाकर आशावादी
जंगल जंगल शांति बस्ती बस्ती आग
घर घर में अलगाव का वही विघटनी राग |
बस्ती बस्ती में उगा कुछ ऐसा आतंक
संस्कार बौने हुए क्या राजा क्या रंक |
जिस थाली में खा रहे करें उसी में छेद
कलियुग की महिमा यही है सतयुग से भेद |
आसमान छूने लगे महंगाई के बोल
नैतिकता को छोड़कर महंगी है हर तोल |
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