ग़ज़ल
जंगलों में, बस्तियों में, आग है, तूफ़ान है
आजकल अपने ही घर में आदमी मेहमान है
हमसफ़र वो क्या बनेगा ज़िक्र उसका क्या करें
इल्म है दुनिया का जिसको दर्द से अनजान है
जिंदगी मजदूर की अब चीखती फुटपाथ पर
लाश ढोती भीड़ में क्या एक भी इंसान है ?
बादलों में छिप न पायेगा 'सुधाकर'का वजूद
चाँदनी जी भर लुटाने में ही जिसकी शान है |
- डॉ. सुधाकर आशावादी
जंगलों में, बस्तियों में, आग है, तूफ़ान है
आजकल अपने ही घर में आदमी मेहमान है
हमसफ़र वो क्या बनेगा ज़िक्र उसका क्या करें
इल्म है दुनिया का जिसको दर्द से अनजान है
जिंदगी मजदूर की अब चीखती फुटपाथ पर
लाश ढोती भीड़ में क्या एक भी इंसान है ?
बादलों में छिप न पायेगा 'सुधाकर'का वजूद
चाँदनी जी भर लुटाने में ही जिसकी शान है |
- डॉ. सुधाकर आशावादी
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