एक मुक्तक प्रस्तुत है -
शुभ-रात्रि:
शुभ-रात्रि:
रात आती है तो मिट जाती है दिन की थकन
न भोर की चिंता न याद है अब पेट की अगन
चलो भूल जाएं दिन में बीते जो गिले शिकवे
मिले सौगात स्वप्निल ललके जीने की लगन ॥
---------आओ चले नींद के मीठे सफ़र पर------
- सुधाकर आशावादी
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