sudhasha
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014
:: : : ज़िंदगी की किताब :::::
ज़िन्दगी की किताब मैं सुबहो शाम लिखता हूँ
कभी कुछ ख़ास तो कभी कुछ आम लिखता हूँ
सुबह कर्म पथ पर अग्रसर मैं काम लिखता हूँ
शाम को बिस्तर पे होता हूँ , आराम लिखता हूँ
फिर भी रहता शेष जिसको मैं लिख नहीं पाता
अधूरेपन के किस्से ही तो मैं तमाम लिखता हूँ ।
- सुधाकर आशावादी
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