sudhasha
शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014
:: मुक्तक ::
एक चेहरा फेसबुक पर दूसरा जो घर में है
एक अधर मुस्कान धारे, दूसरा अधर में है
बात चेहरे की है चेहरा कौन किसका देखता
एक है दूजो की खातिर दूसरा अंतस में है।
- सुधाकर आशावादी
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