sudhasha
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014
मुक्तक
युवा अवस्था में लगे जनम जनम की प्यास
प्रौढ़ावस्था में ही मिले सदा तृप्ति का आभास
तृप्ति का आभास कि जीवन सार बताये
यह जीवन है अनमोल व्यर्थ न इसे गंवाएं।
कहे 'सुधाकर' बचपन यौवन फिर न आये
मगर बुढ़ापा जिसमे अनुभव खान समाये।
- सुधाकर आशावादी
1 टिप्पणी:
ठाकुर आदित्य तोमर
27 फ़रवरी 2014 को 6:27 pm बजे
Gazabbb
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