बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

आशादीप जलाएं
जाओ नहीं सुननी है मुझे तुम्हारी कोई भी बात
तुम्हे नहीं सौंपनी है अब अपने प्यार की सौगात
तुम अपनी देह रूप सौंदर्य पर इतना न इतराओ
अपने यथार्थ को समझ इस धरा पर उतर आओ।

तुम सच जानती हो उम्र झूठ की लम्बी नहीं होती
कृत्रिम औपचारिकताएं कभी सम्वेदना नहीं बोती।
सो क्यों रहती हो भ्रमित सी इस मृगमरीचिका में
कुछ नहीं शेष छीजते सम्बन्धों की विभीषिका में। 

अमावस से रीते रिश्तों में आओ आशादीप जलाएं
पूनम सी रातों सा चहकें प्रीत राह पर कदम बढ़ाएं।
- सुधाकर आशावादी

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