आशादीप जलाएं
अपने यथार्थ को समझ इस धरा पर उतर आओ।
तुम सच जानती हो उम्र झूठ की लम्बी नहीं होती
कृत्रिम औपचारिकताएं कभी सम्वेदना नहीं बोती।
कृत्रिम औपचारिकताएं कभी सम्वेदना नहीं बोती।
सो क्यों रहती हो भ्रमित सी इस मृगमरीचिका में
कुछ नहीं शेष छीजते सम्बन्धों की विभीषिका में।
अमावस से रीते रिश्तों में आओ आशादीप जलाएं
अमावस से रीते रिश्तों में आओ आशादीप जलाएं
पूनम सी रातों सा चहकें प्रीत राह पर कदम बढ़ाएं।
- सुधाकर आशावादी
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