मुक्तक
आँख के अंधे नाम नैनसुख बात पुरानी है
आँख खुली पर अंधे दिखना नई कहानी है
संबंधों की बात करें तो खोया अपनापन
रक्तिम आभा छोड़ बुढ़ापा चुने जवानी है।|
[२]
नफरतों का दौर बढ़ता जा रहा है
आदमी विश्वास छलता जा रहा है
आग की भट्टी का कैसे दोष माने
खोट सोने संग पिघलता जा रहा है ।।
-डॉ. सुधाकर आशावादी
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