घर के बासन भी अब खनखनाने लगे
दर ये अलगाव के खटखटाने लगे
प्यार घटने लगा है यहाँ इस कदर
लोग मिलने में भी नकनकाने लगे।
पीड़ा में दर्द की सी चुभन ही नहीं
आग में आग की सी अगन ही नहीं
जिंदा लाशें बने लोग फिरते यहाँ
खून में खून की सी तपन ही नहीं ।।
- डॉ. सुधाकर आशावादी
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