muktak
ध्वंस की ये धरा न गगन चाहिए
ज्ञान में हो मगन वो नमन चाहिए
गोला बारूद के अब खिलौने न हों
हो सुगन्धित धरा वो चमन चाहिए . .
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डर के रहता है जो वो नहीं वीर है
हर कदम पर लिए डर की जो पीर है
मृत्यु है, पाप है, नर्क है, भय यहाँ
इसको काटेगीजो वो ही शमशीर है
- सुधाकर आशावादी
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