गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

muktak

                       मुक्तक    
तुम्हारा बोलना है क्या हमें कोयल बताती है 
तुम्हारे रूप की निखरन नई कोंपल जताती है 
तुम्हारी कल्पनाओं में बुने हैं नयन ने सपने 
हवा के मंद झोंकों से तुम्हारी गंध आती है ।।
                        - डॉ. सुधाकर आशावादी 

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