मुक्तक
मत हवाओं से डरो तुम जगमगाओ
पीर उर में लाख हो पर मुस्कराओ
अब अँधेरा काल बन डसने न पाए
भोर होगी तुम नया सूरज उगाओ ।।
[२]
सच कड़वा है फिर भी इससे प्रीत करो
झूठ मिटे जग से कुछ ऐसी रीति करो
भौतिकता है भरम नहीं है अपनापन
हारे न तन-मन कुछ ऐसी जीत लिखो ।।
- डॉ. सुधाकर आशावादी
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