आज स्वयं से ही कुछ बात करें
बात भी करें , मुलाकात भी करें
आखिर किस दिशा जाना है हमें
क्यों भागमभाग कर रहे हैं हम ?
- सुधाकर आशावादी
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014
मुक्तक :
अँखियों से लरजी शर्म और छुअन का स्पंदन आँखों आँखों होता मन से वन्दन अभिनन्दन दूर हो गया अब स्वयं से स्वयं का ही बतियाना जाने कैसे लुप्त हुआ रिश्तों का पावन चन्दन ।। - सुधाकर आशावादी
बुधवार, 15 अक्टूबर 2014
कैसी संध्या कैसा सुप्रभात :
दूध से वंचित दुधमुंहे बच्चे / गौ हत्या से देश में होती गायों की कमी। अन्य दुधारू पशुओं का अंधाधुंध कटान।
गौ वंशीय पशुओं के हत्यारों द्वारा पुलिस चौकियों पर हमला। कानून के रखवालों के लिए स्वयं की रखवाली ही कठिन हो गयी है , सत्ता गौ हत्यारों की संरक्षक बनकर गूंगी, अंधी, बहरी है। कम्बख्तों ऐसी भी क्या सियासत , जो दुधमुंहे बच्चों के मुँह से दूध भी छिनवा रहे हो ?
- सुधाकर आशावादी
मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014
देश की पहिचान किस से कौन जाने कौन समझे
देश की अब शान किस से कौन जाने कौन समझे
देश का अपमान जिनकी है यहाँ कुत्सित सियासत
देश का अभिमान किस से कौन जाने कौन समझे ?
- सुधाकर आशावादी
शनिवार, 27 सितंबर 2014
मुक्तक
गिलास भरा है आधा या यह आधा खाली है। नकारा चिंतन का मित्रो कोई नही रखवाली है अच्छा है हम जो भी देखें अच्छा ही देखें मित्रों सृजनशीलता से ही मित्रों जीवन में खुशहाली है।। - सुधाकर आशावादी
सोमवार, 22 सितंबर 2014
मुक्तक
राष्ट्र चेतना जन जन में होनी बहुत जरूरी है देश की खातिर जीना मरना मित्रों मजबूरी है स्नेहभावी जीवन यापन यही हमारा दर्शन है कोई इसे कायरता समझे,इसमें नामंजूरी है।। - सुधाकर आशावादी
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
सियासत केवल बहेलिये का जाल है , जो येन केन प्रकारेण सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है। सवाल यह है कि जब तक देश में शिक्षा का सही प्रचार प्रसार नहीं होगा तथा शिक्षा मदरसों और एकपक्षीय कट्टरपंथियों में बंटी रहेगी तब तक स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही नहीं समूचे देश में करना निरर्थक है।
- सुधाकर आशावादी
आज के दौर में कुछ भी फुर्सत नहीं
काम कुछ भी नहीं फिर भी फुर्सत नहीं
अंधी गलियों में जाने क्या ढूंढते हम रहे
अर्थ की चाह में हम को फुर्सत नही।
= सुधाकर आशावादी
सोमवार, 25 अगस्त 2014
मुक्तक :
भटके कदमों से कैसे चल पायेंगे
अपनी मंजिल कैसे यूँ हम पाएंगे
छोड़ो अपने सभी आग्रह पूर्वाग्रह
यूँ जीवन नौका हम खेते जाएंगे।
- सुधाकर आशावादी
शुक्रवार, 18 जुलाई 2014
मुक्तक :
कुसूर आईनो का नहीं जो आईने बदल दें
सच तो यह है हमने उनमें झाँका ही नहीं
गुड्डे गुड़िया के खेल यहाँ अब कौन खेले
प्रीत के खेल का मर्म हमने जाना ही नहीं।
- सुधाकर आशावादी
मंगलवार, 15 जुलाई 2014
मुक्तक
किसे दोष दूँ किस किस के गुनाह गिनाऊँ गुनहगार मैं भी कम नहीं कहाँ पनाह पाऊँ अंगुलियाँ उठाना तो हर किसी को आता है
स्वयं पर उठी अँगुलियों को कहाँ ले जाऊँ ?
- सुधाकर आशावादी
शुक्रवार, 21 मार्च 2014
चुनाव चुनाव खेल रहा पर महँगाई का आलम है
महंगे महंगे सौदे सारे हाँ महँगाई का परचम है
सत्ता और व्यापारी मिलकर लूट देश को खायेंगे
चन्दे की हो गई उगाही अब लूट में साथ निभाएंगे।
- सुधाकर आशावादी
मंगलवार, 18 मार्च 2014
मुक्तक :
हार है न जीत, यही तो ज़िंदगी का गीत है।
मृत्यु क्षण तक यहाँ पर ज़िंदगी से प्रीत है।
राह भले कितनी कठिन हो, चलना ज़रूरी है डर से आगे ही सदा मिलती सभी को जीत है।