मुक्तक :
हम रहे कुछ विवादों में उलझे हुए
कहते स्वयं को रहे हम सुलझे हुए
यदि तुम गलत हम भी सुधरे नहीं
आओ देखें तनिक पीछे मुड़ते हुए ।।
- सुधाकर आशावादी
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हिचकियाँ पास लाती हैं यादें तेरी
कनखियाँ भी बुलाती हैं यादें तेरी
घूमता हूँ कभी प्रेम उपवन में मैं
पुष्प गंधों से आती हैं यादें तेरी ।।
- सुधाकर आशावादी
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