एक सोच:
छोड़ो ...जाने भी दो ,,क्यों परेशान होते हो
उसकी बातों से ...उसकी ह्रदय बींधती आलोचनाओं से
---क्या करे ..बेचारा स्वयं से ही खफा है
उसे सहारा दो ...उसकी आलोचनाओं का
सकारात्मक अभिव्यक्ति से ज़वाब दो
क्योंकि सभ्य समाज में ईंट का जवाब पत्थर नहीं होता ।
- सुधाकर आशावादी
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