sudhasha
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013
मुक्तक :
साँप-सीढ़ी, ऊँच- नीच या छुआ-छाई
बचपन में न बात समझ में कुछ आई
जब से होश संभाला कुछ हम बड़े हुए
हमें जिन्दगी बस इनमें उलझी पाई ।।
- सुधाकर आशावादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें